जब आपकी तकलीफ से सामने वाले को तकलीफ न होकर ये खुशी हो कि....आपके लिए वो कितना पागल है....तो समझ जाना चाहिए कि सामने वाले का अहंकार आसमान पर है 

अवसाद कभी भी अचानक से नहीं उभर आता....वह जमता रहता है आँखों में,मन की खोह में,अदृश्य दैत्य सा चारो ओर घूमता रहता है...पर महसूस कराता रहता है..नींद की राहें रोककर खड़ा हो जाता है....जब तक सबके सामने आता है तब तक सबकुछ गवां चुका होता है इंसान अपना सबकुछ 

जब आपकी तकलीफ से सामने वाले को तकलीफ न होकर ये खुशी हो कि....आपके लिए वो कितना पागल है....तो समझ जाना चाहिए कि सामने वाले का अहंकार आसमान पर है 

कभी -कभी हमें कोई राह नहीं सूझती ...हम अपने बनाये रास्तों में खुद ही उलझ कर रह जाते हैं जिंदगी वह नहीं जिसे हम अपने हिसाब से अपनी जरुरतों को देखते हुए पूरा करना चाहते हैं यह किसी पेनड्राइव में सुरीले मनचाहे गाने भर लेने जैसा नहीं है यहाँ तो जिन्दगी रेडियो की तरह बजती है जहाँ जो गाने बजे उसे सुनकर आनंदित होना होता है या फिर  चैनल बदल लेना होता है...आप कोई भी चैनल चलाओ पर उसके तो प्रोग्राम फिक्स होते हैं....कभी कभार ही आपका पसन्दीदा गाना बज सकता है हमेशा नहीं (जिंदगी के उतार चढ़ाव जैसे)

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