अंशिका की आवाज की गहराई वह क्या समझे।अंशुमन मैं.... तुम्हारी तस्वीर बार बार देखती हूँ और हर एक याद से जुड़ती हूँ।तुम चाह कर भी वो लम्हे लौट नहीं सकते,तो एक नया लम्हा ही बना दो।कम से कम इसी बहाने तुम साथ तो रहोगे।मुझसे जुड़े तो रहोगे।अंशिका की मनुहार सुने बिना ही अंशुमन् ने उससे मुह फेर लिया।उसे उसके जीवन का नया पड़ाव जो मिल रहा था।उसके लिए तो हर सफर में में एक सराय मिल ही जाता है।उसे कहाँ एहसास है कि सराय घर नही हुआ करते।.....​आज तुम्हें फर्क नही पड़ता कि मैं तुमसे दूर हो रही हूँ, कल वापस आना पड़ा तो क्या तुम मुझतक पहुँच पाओगे ...?तुम्हारे कदम आगे बढ़ रहे हैं और पीछे के रास्ते मिटते जा रहे हैं।आने वाले दिनों में कोई ऐसा न होगा जो मेरी कमी पूरी कर देगा।वो तुम्हें समझ में आएगा ,पर अभी नही।तुम दूर तक सफर कर लो, हो सकता है कोई बेहतर मिले।अंशुमान को अपने से दूर जाते हुए रागिनी भरे आँसुओं से देखती है।पर,रोक नही सकती।....तुम मेरी कातिल हो ,मेरे दिल की कातिल हो,तुम्हारे जैसा पत्थर मैंने नहीं देखा था।तुम मेरी ज़िंदगी मे क्यों आई जब तुम्हे जाना ही था ,तुम किसी की नही हो सकती हो,तू जिंदगी में अकेली ही रह जाओगी तुम्हें मेरे जैसा कोई नही मिलेगा ....love is love. 

        अंशुमंन् चुप ..और अंशिका लगातार कभी खुद को कभी अंशुमंन् को कोसती रहती ।कभी उस मिलने की जगह को धिक्कारती।अंशिका का आँसुओं से भीगा चेहरा और सूखते जज्बात जैसे उसे सांस भी नही लेने दे रहे थे।ये प्रेम के न जाने कितने एंगल बन जाए पता नही चलता। ये उससे वो उससे.......क्यो दिल को इतना तार-तार कर देता है कि जिसमें मन उलझकर रह जाता है। किसी की यादों से खुद बाहर करना समुद्र के गर्त से बिना ऑक्सीजन बाहर आने से भी दुष्कर है।एक तरफ रीमा ने ऐसा तो कभी न चाहा था कि उसे किसी के लिए इतना विवश होना होगा कि उसे अपने आत्मसम्मान की भी आज सुध न रही।प्रेम की कोई परिधि क्यों नही है की इंसान तय कर लेता की मुझे परिधि से बाहर नहीं जाना।इस प्यार की रफ्तार का कोई मापक यंत्र होता तो जान पाती की ये आँखों के रास्ते दिल को पार कर जाता है।मन बस उसे ही ढूढता है।जिसे प्यार की कोई परवाह ही नही।अंशिका अब उसकी एक एक याद से संवाद करती है.... 

 Dr. Sangita

Lucknow

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