काफी समय से एक बात मन में बादल की तरह उमड़- घुमड़ रही थी। परिवर्तन प्रकृति का नियम है, वह बदलती रहती है, शाश्वत सत्य अटल रहता है। मानव का एक बहुत बड़ा सत्य है कि वह दूसरों का बदलना बहुत नोटिस करता है और उसी के अनुसार व्यवहार करता है। यहाँ विशेष रूप से मानव के शरीर की बात की जाए तो शिशु मानव  वत्सल भाव जगाता है,बालपन की कोमलता हृदय को आह्लादित करता है, किशोर मन की हलचल जहाँ अगले को महसूस होने लगती है, युवा हृदय जहाँ से अनुराग, आसक्ति और आजीविका के पथ पर अग्रसर होने लगता है वहीं से मानव अपने चरम को छूता हुआ जीवन की साँझ की ओर बढ़ने लगता है। 

         मानव शरीर में होने वाले परिवर्तन दूसरों के मन पर प्रभाव डालते हैं। आकर्षक व्यक्ति अनायास ही सामने वाले के नेत्र बाँध लेता है। पर शरीर के आकर्षण से बँधे लोग आकर्षण हीनता को स्वीकार कर पाने में असमर्थ होते हैं। यह मैं स्वयम् के अनुभव से जोड़ती हूँ।कुछ समय पहले तक मैं शरीर से ठीक- ठाक नजर आती थी, लोग मेरी तारीफ़ पर तारीफ़ करते थे, फिर मैंने थोड़ा सेहत को ढील दे दी और दोहरे शरीर की नजर आने लगी। मुझे विश्वास नहीं होता कि मुझसे जुड़े एक- एक व्यक्ति वह महिला हो या पुरुष सबने एक बार जरूर ध्यान दिलाया कि मेरी सेहत काफी अच्छी दिख रही है ....कुछ लोगों ने मुझे अपना समझ कर सलाह भी दी कि थोड़ा ध्यान देना चाहिए मुझे। आप स्वयम् ध्यान दें तो पाएंगे कि जब आप कॉलेज में थे... युवा और उर्जावान थे तो यह शरीर कितना कमाल का था। आपने अपनी प्रतिभा का जितना लोहा मनवा लिया होगा उस समय ...आज भी उसी के कारण आप सम्मान के पात्र खुद को पाएंगे। शरीर पीछे छूट जाता है, 40 के बाद आपके कार्यों की ही गूंज होती है। आपके स्थान पर आपसे कम उम्र वाला कब आ जाता है आपको भनक भी नहीं लगती। यह किसी एक की बात नहीं है सभी के साथ यही होता है, यह ऐसा सत्य है जिसे स्वीकार करना कठिन होता है। 

      ये कठिन क्यों है..??? कभी सोचा कि हम किस प्रकार रिप्लेस कर दिए जाते हैं। हमारी जगह परिवार समाज में कब कोई ले लेता है।, हमें पता भी नहीं चलता। खुद को ढलते देखना बहुत ही भयावह होता है।जब हम चाह कर भी कुछ नही कर पाते हैं। पिछली तस्वीरों से खुद को तोलते रहना, और अपने यौवन को देखकर खुद ही तृप्त हुए जाना... कौन नहीं करता ऐसा.... सभी करते हैं। आज तो कई वर्षों की तस्वीरें अंतर बताने के लिए काफी होती हैं। क्या हम ऐसा नहीं कर सकते कि खुद को उसी तरह स्वीकार कर लें जो हम हैं, जिस भी आकार और प्रकार में। यह यूँ ही नहीं है.... 

                        Public Public लोग और लोग                             good think

                          Dr. Sangita

                           Lucknow


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