जीवन में सबकुछ किनारे कर के कुछ पल अपने लिए जी लेना चाहिए।एक ऐसा पल जो सिर्फ आपके हो।कल को आप ....'काश'....कहते हैं तो खुद को ही दोषी पाएंगे।लोगों का क्या है....लोग आपके आस -पास तबतक ही नजर आते हैं जबतक आप उनके लिए कुछ कर सकते हों।वक़्त का पहिया बहुत तेजी से चलता है,जिसमें अपने- पराए तेजी से गुजरते नजर आते हैं।
-संगीता
जो आपका प्यार है उसे खोना मतलब अपनी जिंदगी का एक हिस्सा खोने के बराबर होता है
जमा होती जाती है उम्र मेरी आँखों के नीचे,झुकते होठों के किनारों पर
दिल की ताल बदल जाती है जब कोई मिलता है फिर ये दिल अपनी ताल भूल जाता है
आजकल लोग किसी से कुछ छुपाना चाहते हैं तो सबसे प्ले उस व्यक्ति को फेसबुक और व्हाट्सएप के स्टेटस पर ब्लॉक करते हैं।
आप किसी के होकर रह सकते हैं पर कोई आपका होकर रहे यह आपके हाथ मे नही
जिसके लिए आप सबकुछ छोड़कर बैठे हो वो कब आपको ही छोड़ दे कहा नही जा सकता।
अपनी कल्पनाओं को किस भाषा मे लिखूँ कि उसे वो पढ़ ले
और अपनी भावनाओं की एक नई लिपि बनाकर तुमपर लिखना चाहता हूँ
तुम जाने की वजह बताकर जाते तो इतनी तकली न होती ।पर ,इस तरह जाना तुम्हारा जाना कहाँ होता .....तुम गए नहीं मुझे छोड़ते हुए गए हो
राजनीति के चूल्हे में आग भभकने के लिए स्वार्थ की लकड़ी ही काफी नही है।संप्रदायिकताओं की भूसी झोंकना पड़ता है।धर्म की फूंकनी से बीच बीच में आग का ताप बनाये रखना होता है।फिर जनतारूपी गर्म तवे पर अपनी-अपनी रोटी सेंकने का मजा ही कुछ और हैं।
ऐ गजल तू बड़ी भली निकली ,तेरे एक एक लफ्ज़ के लिए दिल का टूटना या जुड़ना जरूरी है
बेमानी सी लगती थी कुछ बातें, वक़्त ने बताया सब कुछ वक्त के साथ बदल जाता है
आज भले ही खुश हो लो किसी की पनाहों में
याद रखना तुमने किसी को बेपनाह भी किया है।
जीवन मे सच्चे चरित्र का आभूषण धारण करो लोगों के दिलों में नीलम के पत्थर का नीला रंग बन बस जाओ ..
जिसे कोई किंतन भी व्हहै अलग न कर पाए....
एक वक्त के बाद दिल वहीं ठहर गया और उम्र गुजरती रही
किसी की बातों को इतना भी दिल से लगाकर नही रखना चाहिए कि दिल में कुछ और रखने की जगह ही न बचे
जब हमारे पास जबान है ,होठ है ,जीभ है ,वाणी के स्वर के हर साधन होते हुए भी जब हम जो कहना चाहें वह न कह पाएँ तो एक गूँगे और हमे कोई फर्क नही होता ।
जो अपनी जबान पर टिकना जानते हैं वो किसी भी हालात में बिकना नही जानते
खतरों से खाली नही है भावना नदी में उतरना अच्छे अच्छे तैराक तो यूँ ही बह जाते हैं
बातें बिखरी बिखरी(things got scattered)
कुछ चीजें जब इंसान के हाथों से फिसलने लगती हैं तो वह मुठ्ठी को पूरे बल से बंद कर लेना चाहता है।फिर भी फिसलने वाली चीज मुठ्ठी से बाहर आ जाती है।
मेरी ही कलम से....
विश्वास तब तक अटूट रहता है जबतक कोई उसे तोड़ने की कोशिश नहीं करता
वो उलझ गया था बालों में
जैसे काँटे वाला छोटा फल
उसके शब्द बाण होते तो धँस जाते
पर उसकी हर आवाज चाकू सी
जो चीरती है मुझे
उजले मखमल से उसके गात
उसकी नन्ही हथेली में उँगलियों के बीच
मेरी ममता का आँचल
उसकी निष्पाप आँखों का नूर...
उसके घुघराले आबनूस सी
उलझी अलकें...
अनुपम सुख का चरम
उसकी खिली मुस्कान
तुम्हारे भीतर प्रेम का दरिया बहता है
पर, कोई सुपात्र नही
जिसमें तुम कुछ जलराशि डाल दो
भरना चाहता है हर कोई तुम्हें
पतझड़ में
डाल से टूटते पत्ते
जमीन पर आने से पहले
जी लेते हो जैसे क्षण भर मुक्त जीवन
जब वो होते हैं खुद के
न डाली का मोह
न धरती की धूल
तैरते हुए हवा में
धीरे -धीरे
धरती की आगोश में
लिपटते हैं
मिट्टी बनने के लिए
तोड़ दिया मैंने हर एक बन्धन
फेंक दिए दिए हर चिन्ह दूसरे के
अपनी काया को करके विलग
सोंचती थी जहाँ नया मिला...
पर ....
आज भी उठाकर सजाती हूँ वह चिन्ह
जो ...मेरे तन से जुड़ा है
निकल नहीं पाती उस खोह से
जहाँ विषधरों के डेरे हैं...
बहलाती हूँ आज भी खुद को
कुछ वक्त ठहर जा ...
अभी तूँ कम पथराई है
अभी भी कच्चे हैं तेरे सब्र के वो फल
अभी भी तूँ अबला है...
सबला तो बन ...
मेरे मन का पतझड़ जाता ही नहीं
कि ...बसन्त आए
बुलाती हूँ खिड़कियों को खोले
उसकी मुट्ठी में आये बाल
प्रेम की बुनियाद हर बार हिलाते हैं
शिद्दत से कोई कोना पकड़
ये दिल तब रोता है
चेहरे के पीछे जो छिपाती हो
ओ राज मुझे मुड़-मुड़ के देखता है।
तुम कहती नहीं हो जो कुछ मुझसे
वो आवाज़ मेरे कानों में चीखता है।
सपने मेरे जहाँ
कोई जाता नही
इतनी स्वतन्त्र मैं कहीं भी
उसकी तकलीफ की शक्ल
कितनी मिलती है
जैसे एक आईने के बाहर
दूसरा आईने के भीतर...
दिन ब दिन
मैं तुम्हारा कायल हो रहा हूँ
मेरा अहम मुझमे पल रहा है
दिल टूटने की खनक नही होती
जल आँखों के हों या प्यालों के
छलक उनकी ठहरी नही होती
जिंदगी किसी की रहमोकरम पर गुजरती है
क्योंकि ..
हर साँस में उसका ही आना -जाना है
कोई रेतीली जमीन हो तुम
तुममे पानी से मैं
ठहर नही सकता
बंद मुट्ठी में भी समा नही सकता
अपनी शीत-गर्म छुअन
दिखा नही सकता
अनगिनत निगाहें
और उसका चेहरा
भूलता नही है
उसपर सभी का पहरा
छुपा लेता है कोई उसे
कंचन की काया समझ
कोई उसकी बातों पर
रह जाता है ठहरा
सोच लो
तुम्हारी तो साँसों में
आवा-जाही है उसी का
और वो है, कोई धूल उड़ता सहरा....
तुम्हारी हथेलियों का ताप
आज भी सर्द रातों में
तपिश बरकरार रखता है
जैसे कोई सूरज मध्धम सा
जलता रहता है आस-पास
बर्फ के पिघलते टुकड़ों सी
कामनाएँ
तुम्हारी मुस्कान पर मचल जाती हैं...
तुम्हारे शब्द तुम्हें तोलते हैं
झूठ नही ,हम सच बोलते हैं...
परख लो मेरी हर जुबाँ
टिके रहेंगे,ये नही डोलते हैं
एक शाम
जब बेहद अकेलेपन में
भीड़ की शक्ल में एक तिल सी
जब न मन में कोई
न जीवन मे कोई
जो गगनचुम्बी इमारतों की ओर
मेरी उँगली उठाये
कितने कोलाहल के बीच
खाली बोतल सी मैं
सुन रही थी अपनी ही बात
उधेड़ रही थी अपनी ही खामोशी
कि, कोई गूँज कानों पर थिरके
हल्की सी मुस्कान होठों पर टहल जाये
सारे जतन काम न आये
क्योंकि ..
वो.. नही था वहाँ
जहाँ वो रहता था..
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