किन्नर और समाज का अंतर्सम्बंध: बदलते परिदृश्य

 परिष्कार करने केl बचपन के दिनों में जाने पर मुझे दिखता है कि किस प्रकार किन्नर की तालिया की गूंज और खंजरी सड़क पर दौड़ती गाड़ी के जैसी आवाज कानों में पढ़ते ही घर के बड़े हमें घर में घर में भेज देते हैं आवाज कानों में पढ़ते ही घर के बड़े हमें घर में भेज देते यह कहकर की आ गए हैं सब देखो कितने में मानते हैंl ना तो दिखना शुरू कर देंगेl उस क्षण 'दिखाना'शब्द चरम उत्सुकता का बिंदु बन जाया करता थाl क्या दिखने लगेगा ......जो भी दिखाएंगे वह कैसा होगा ...?शायद कोई ऐसी चीज होगी जिसे हमें नहीं देखना चाहिए.....पर क्यों .....? हम क्यों नहीं देख सकते ?हम बच्चों को साहस न होता की पूछ सकें और हिम्मत ना होती है कहने की कि,हमें भी देखना हैl मां और दादी से हिम्मत का गठ्ठर लेकर पूछते तो यह पता चला कि उनके गुप्तांग के स्थान पर छिद्र होता हैl इसलिए वह न ही स्त्री हैं न ही पुरुष.....इन्हें हिजड़ा कहा जाता है.....छक्का भी इन्ही को कहते हैंl इससे अधिक न किसी ने कुछ बताया और ना पूछने की हिम्मत होतीl

             जिन प्रश्नों के समुचित उत्तर बाल्यावस्था में नहीं मिलते वह प्रश्न अवचेतन में कुंडली मारे बैठे रहते हैं और अवसर पाकर उत्तर की चाह में समय-समय पर बाहर आना चाहते हैंl जब तक संतुष्टि परक उत्तर मिल ना जाए l बचपन से अब तक कई बार किन्नर के दर्शन हुए पर वह देखने का अवसर न मिला जिसके लिए मन उत्सुक थाl यह उत्सुकता और किन्नर के प्रति समाज का व्यवहार दोनों इस लेख के कारण है ऐसे कौन से उत्तरदाई कारण है जिनकी वजह से किन्नर का स्थान इस समाज में शरीर में अतिरिक्त नाखूनों सा होता है जो जब भी अतिरिक्त दिखे उन्हें काटकर शरीर से उंगलियों से अलग कर दो ....जिसे काटते समय दर्द का अनुभव नहीं होताl यही अनुभवहीनता (दर्द की)हमें किन्नर के प्रति हमारे दकियानुसी  पिछड़े सोच ,हमारे मानसिक स्तर का परिचय देते हैंl

          किन्नर की उत्पत्ति के संबंध में कथाएं हमें अनेक रूपों में सुनने को मिलती हैंl महर्षि वाल्मीकि ने अपने उतर रामायण मे किन्नर की उत्पत्ति के संबंध में व्यापक प्रकाश डाला हैl कहा जाता है कि बहुत समय पहले राजा कदम के पुत्र इल ही प्रथम किम पुरुष के रूप में जाने जाते हैं भगवान शिव और पार्वती के अर्धनारीश्वर स्वरूप के प्रभाव , पार्वती के वरदान से पुरुष से स्त्री रूप में परिवर्तित इल को एक माह किम पुरुष और एक माह किम पुरुशि इला बनने का वरदान मिलाl जिससे किन्नर का जन्म हुआ और एक समुदाय के रूप में समाज में अपने इस स्वरूप के कारण एक अलग अस्तित्व के रूप में जाना जाने लगाl सबसे पहले हिजड़ा किन्नर (यूट्यूब के माध्यम से) किमवदंतीयों के आधार पर कथाओं से इतर  किन्नर की उत्पत्ति से संबंधित वैज्ञानिक कारण को बताते हुए रजनी प्रताप कहती हैं कि ,किन्नर समाज का वह वर्ग है जो शारीरिक रूप से या यौनिक अंगों के विशेष संदर्भ से अपूर्ण माना जाता हैl किन्नर की बाह्य देह का उसके अंतर्गत के भावों के साथ तालमेल भी नहीं होताl अर्थात पुरुष के जैसी मांसलता होती है वास्तव में यह एक जैविक अनिश्चित के कारण होता है कभी-कभी गुणसूत्र की गड़बड़ी से लिंग निश्चित का भ्रम सामने आता है ल टेस्टोस्टेरोन के प्रभाव की न्यूनता के कारण लिंग पुरुषों का और लिंग भाव स्त्री का होने का भ्रूण होने पर भ्रूण हिजड़े के रूप में जन्म लेता हैl इसी जैविक अनिश्चित के कारण यह वर्ग समाज के अन्य वर्गों की भांति सामान्य प्रतीत नहीं होताl (सामयिक सरस्वती पत्रिका संपादक महेश भारद्वाज अंक 13 14 अप्रैल सितंबर 2012 पृष्ठ संख्या 66)असामान्य शारीरिक स्थिति और पूर्णता उनके लिए एक अभिशाप के रूप में साथ-साथ चलती है और सामान्य शारीरिक और मानसिक स्थितियों का भयावह द्वंद एक किम पुरुष की आत्मा को सामाजिक झंझावातों से बाहर नहीं आने देताl पुरुष की मानसिक स्थितियां यदि स्त्री के भावों को प्रकट करने लगे तो प्रभाव दूसरों पर पड़ता है ना कि उसेl पुरुष स्त्री पुरुष शरीर पर क्योंकि स्वयं की दृष्टि स्वयं का मन नहीं देख पाती एक पुरुष के अंतर में बसी स्त्री कभी अनुभव नहीं कर पाती कि वह एक पुरुष शरीर में हैl क्योंकि व्यक्ति नेत्रों से नहीं अपने मन के नेत्रों से ही दुनिया को देखता हैl मनोज रुपाड़ा भी अपने उपन्यास 'प्रति संसार' (2008)में व्यक्ति के भीतर और बाहर के प्रति संसार की बात करते हैं ऐसे समुदाय को जहां संवेदनात्मक संबल की आवश्यकता होती है वहां मानसिक प्रताड़ना उनकी आत्मा को चाकू के नोकों से भर देती हैंl आदि समय से किन्नर समुदाय अपने समाज से अलग अस्तित्व के साथ जीवन यापन करता रहा है l  साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है इस दर्पण में किन्नर समुदाय सदा से इन भ्रष्ट परिस्थितियों में नहीं थाl राजमहल में अंत:पुर में नवाबों मुगलों और राजशाही नवाब शाही व्यवस्थाओं के लगभग अंत में इस समुदाय को अंत:पुर और हरमों से बाहर निकालने और विकट परिस्थितियों को भोगने के लिए विवश कर दियाl अंतर से बाहर की दुनिया में जीवन यापन का दुष्कर ,सुरक्षा संरक्षण के प्रति समाज की उदासीनता ,लोक व्यवहारों में असंवेदनशीलता ने इनकी अपूर्ण शारीरिक अंगों के मध्य स्थित हृदय को खंड-खंड कर दियाl क्षुधा शक्ति के कारण दुष्कर मार्ग में आगे बढ़ते हुए अनाचार,अपमान व विचार ने इस समुदाय को जकड़ लिया यह समुदाय अपने अधिकारों की लड़ाई वर्षों से लड़ रहा हैl उनके मानवाधिकारों का हनन वर्षों से हो रहा है किन्नर समुदाय इसे थर्ड जेंडर भी कहा जाता हैl अपनी दुआओं और मनोरंजन के माध्यम से ये अपना जीवन यापन करते हैl इनकी  मर्मांतक पीड़ा अनुभव इसी को है l हम जैसे सभी सामाजिकों को जीव से तिरस्कार के बोल ही पूछते हैं कुछ संवेदनशील सामाजिक अपवाद हैं थर्ड जेंडर पर बहुत से साहित्यकारों ने अपनी दृष्टि से अपनी रचनाएं समाज में प्रस्तुत की है साहित्य में सामाजिक परिवर्तन की क्षमता होती है इसे नकारा नहीं जा सकताl समाज में एलजीबीटी अर्थात स्त्री समलैंगिक (लेस्बियन )पुरुष समलैंगिक उभयलि  तथा किन्नर समुदाय थर्ड जेंडरl इनकी हृदय में अंतर मन की शक्तियां भी साहित्य के माध्यम से और कानूनी संरक्षण से ही सुधर सकती हैंl इन्हीं आवश्यकताओं को देखते हुए साहित्य में थर्ड जेंडर विमर्श पर विचार किया जाने लगाl चैत सिंह मीणा अपने लेख में इस आवश्यकता पर बल देते हुए कहते हैं कि ,आखिर साहित्यिक परिदृश्य में थर्ड जेंडर की आवश्यकता क्यों पड़ी संभावित इसी अभाव में थर्ड जेंडर विमर्श को जन्म दिया "23 24 जुलाई 2016 को हिंदी भवन भोपाल में द्वारा समकालीन उपन्यासों में थर्ड जेंडर विमर्श को आरंभ किए जाने की घोषणा करती हूं,थर्ड जेंडर के को सामाजिक समानता के अधिकार दिलाने में साहित्य महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और आवश्यकता है ऐसे साहित्य पर एक विमर्श कीl" (सामाजिक सरस्वती पत्रिका संपादक महेश भारद्वाज अप्रैल सितंबर 2018 सामाजिक प्रकाशन दिल्ली पृष्ठ संख्या 62 )थर्ड जेंडर साहित्य लेखन एक विमर्श के रूप में समाज के मध्य आज उपस्थित है सब भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शिक्षा और सरकारी नीतियों में थर्ड जेंडर लगभग शून्य ही नजर आता हैlकिसी भी व्यक्ति के लिए सरकार और कानून विशेष महत्व रखते हैं हम देख पाते हैं कि वर्ष 2009 से पूर्व थर्ड जेंडर के प्रति किस प्रकार की उदासीनता हमारे समझ आते हैं लेखक विजेंद्र प्रसाद सिंह इस विषय पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि हिजड़ों की अस्मिता की लड़ाई में सबसे सकारात्मक मोड तब आया जब नवंबर 2009 से चुनाव आयोग इन्हें अन्य की श्रेणी में शामिल कर मतदाता पहचान पत्र दे रहा है और उसी के फल स्वरुप 28341 तृतीय लिंगी व्यक्ति मतदाता के रूप में पंजीकृत है (लेखक के यह लेख लिए जाने लिखे जाने तक संख्या की संख्या है,समकालीन सरस्वती महेश भारद्वाज अप्रैल सितंबर प्रश्न संख्या 62 )अपने जननांग दोस्त से पीड़ित यह समुदाय  पशुवत जीवन को नकार कर  विडंबना मुक्त होकर जीवन जी सकेl इस ओर शासन की नीतियों ने विशेष महत्वपूर्ण भूमि भूमिका निभाई हैl भारत में  किन्नर की चार शाखाएं हैं बुचरा,नीलिमा (स्वयं बने या बनाए जाने वाली )मनसा( स्वेच्छा से समुदाय में सम्मिलित होने वाले)हंसा (शारीरिक अपूर्णता के कारण पाए जाते हैं) विश्व मे भारतीय  किन्नर से बेहतर स्थिति में वह जीवन यापन करते हैं क्योंकि भारत से इतर अन्य देशों में  किन्नर को समाज में और सरकार से संरक्षण ,अधिकार ,सुरक्षा,रोजगार के अवसर दिए जाते हैंl जिससे उनकी जीविका के साधन उन्हें सुगमता से प्राप्त होते हैंlभारतीय किन्नर के जीवन में कानूनी अधिकार प्राप्त होने से तब उन्हें उनके जीवन संचार को बल मिला जब 15 अप्रैल सन 2014 को भारत की माननीय उच्च न्यायालय उच्चतम न्यायालय ने किन्नर समुदाय को स्त्री और पुरुष वर्ग से अलग एक अन्य वर्ग तृतीय लिंगी के रूप में मान्यता दीl यह ऐतिहासिक फैसला जिसे सब ने प्रफुल्ल हृदय से स्वागत कियाl यह भारतीय किन्नरअसली किन्नर समुदाय के लिए वरदान से काम नहीं है अस्मिता अधिकांश ,अधिकार और आपबीती की बात समझ के सम्मुख रखना थाl वह संभव हुआ 21वीं सदी के प्रथम दशक से उपन्यासों के माध्यम से उपन्यास साहित्य की मनमोहक विधा है इसमें आत्मसात करने की क्षमता हैl यह क्षमता वर्ष 2002 में नीरजा माधव द्वारा रचित उपन्यास "यम द्वीप" के माध्यम से देखिए यह शीर्षक एक प्रतीक किन्नर के रूप में हमारे समझ स्वयं सुधार की पहल करने के लिए प्रेरित करता है इस उपन्यास के पात्र ने बीवी सोना मानवी और आनंद अपने संघर्षों के साथ अपनी मान्यता करुणा और उदारता के साथ अपने समुदाय को प्रकाश युक्त मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैंl डॉक्टर नीरज माधव अपने लेख यमदीप में लिखते हुए कहती हैं रहती है कि किन्नर की दशा का वर्णन करती हैं घर के एक दिए को केवल यम से संवाद करने के लिए उठाकर घर कूड़े का ढेर पर रख देना और फिर उधर मुड़कर भी ना देखने की वह कब जलते जलते बुझा सत्य से विमुख होना हैl उसे मां और उसके जीवन भर के लिए बढ़ जाने वाले उसे बेटे बेटी के हृदय में झांक कर कोई देखे क्या भूल पाए हैं दोनों एक दूसरे को...?अपनी दुनिया में किसी को ना झांकने देने वाला क्या निष्ठुर हो पाए हैं ..?अपने मन की गहराइयों से नारियल की तरह उलझी जटा झूठ और कठोर पान के नीचे मिली एक तरलता चुपचाप कांपती डोलती ( सरस्वती संपादक महेश भारद्वाज पृष्ठ संख्या 20 अप्रैल सितंबर 2018)इसी कठोरता के भीतर की तरलता में भी कर लेखक मनोज rupda अपने उपन्यास 'प्रति संसार' (2008)में  उद्योगपति का बेटा आनंद जो अपने शरीर की अपूर्णता जननांग दोष से अपरिचित है वह अपनी मानसिक जटिलताओं से घिरा,अपने बाहरी और भीतरी दुनिया के बीच संतुलन  बिंदु पर स्थिरता को नहीं प्राप्त कर पाताl समाज में ऐसे आनंद का क्या एक ही गंतव्य है कि न समुदाय न समाज.....क्या ऐसे जननांग दोष से पीड़ित मनुष्य को अपने भावनाओं के अनुसार अपना लिंग चयन स्त्री या पुरुष का अधिकार नहीं होना चाहिए..?संविधान द्वारा प्रदत्त समस्त मौलिक अधिकार क्या स्त्री और पुरुष वर्ग के लिए ही समान रूप से प्राप्त किए हैं?ऐसे ही अनगिनत प्रश्न इस समुदाय के लिए उत्तर की कामना करते हैं ,कि एलजीबीटी से संबंधित समस्याओं को रेखांकित करती है ..कृति 'गुलाम मंडी' इसमें निर्मला भुराडिया ह्यूमन ट्रैफिकिंग या मानव व्यापार और वे विचार और अनाचार व्यसन में लिप्त समस्त व्यापार को अपने पत्रों में रानी कल्याणी बाबा मिलरे शाह ,लक्ष्मी ,जानकी,मोहन और अंगूरी के माध्यम से सारी असामाजिक स्थितियों की विभतस्ता से पर्दा हटाती 

         इसी प्रकार की विषय वस्तु से मेल खाते उपन्यास विधा में ही रचित 'तीसरी ताली' 2011 भी समाज के विद्रोह मुख्य का दर्शन अपने पत्रों में विनीता रानी ज्योति मंजू और विजय के माध्यम से करते हैं इसी प्रकार थर्ड जेंडर की संवेदनाओं को आधार बनाकर महेंद्र भीष्म अपनी रचना किन्नर कथा 2011 तथा ' मैं पायल' 2016 समाज के हाथों में प्रेषित करते हैंl 'किन्नर कथा'में लेखक ने यह प्रमुखता से उजागर किया है कि "अगर प्रकृति ने किसी व्यक्ति को इस तरह की शारीरिक विकृति दी है तो इसमें उसे व्यक्ति की क्या गलती है भेदभाव का यह दंश सिर्फ समाज से ही नहीं मिलता अभी तो अपने माता-पिता से भी मिलता है"चंदा जो पहले सोना थी उसको भी यही प्रताड़ना झेलनी पड़ती है किन्नर समाज को वह हिस्सा है जो हमेशा उपेक्षा की नजर से ही देखे जाते हैं इसी अपेक्षा के कारण यह पूरा का पूरा समाज अवसाद की अवस्था में चला जाता है( डॉक्टर जय नारायण दिसंबर 2012 इंदिरा नगर लखनऊ पृष्ठ संख्या 78)इसी उपेक्षा और अवसादों की चट्टानों को भीतर जमा जीवनी पर उपन्यास की कोठी में महेंद्र भीष्म ने प्रस्तुत किया है इस उपन्यास को अपनी दृष्टि से परखती पुष्पा गुप्ता अपने लेख हिंदी उपन्यासों में थर्ड जेंडर में स्पष्ट करती हैं "पायल के जीवन में आए उतार-चढ़ाव समाज के गलीज वह सुंदर दोनों पक्षों को उद्घाटित करते हैं किन्नर की नियत ही नहीं बदलती या सामाजिक तथा स्थिति वर्ग बदलने नहीं देता यह भी स्पष्ट होता है कि सभी किन्नर से व्यक्तिगत रूप से अपनी स्थिति में सुधार लाना चाहे और अपना मानसिक एवं व्यक्ति विकास करते हुए अन्य क्षेत्रों में रोजगार की संभावनाओं को तलाश है तो सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं" (सामाजिक सरस्वती संपादक महेश भारद्वाज पृष्ठ संख्या क्या होना अप्रैल सितंबर 2018)सकारात्मक दृष्टिकोण सदैव सुधार का प्रेरक रहा है इसमें कोई संदेह नहीं है भावनाओं की मखमली जमीन को स्पर्श करते हुए वरिष्ठ लेखिका चित्रा मुद्गल अपने उपन्यास 'पोस्ट बॉक्स नंबर  203 नालासोपारा' 2018 में बिन्नी उर्फ विनोद उर्फ विमली के तिरस्कार को जीवन के स्याह पक्ष को उद्घाटित करती हैं इस उपन्यास के लिए वर्ष 2018 का हिंदी भाषा के लिए 'साहित्य अकादमी पुरस्कार 2018' के लिए चयनित किया गया यह पुरस्कार पाने की सूचना से आह्लादित चित्रा मुद्गल कहती हैं 'मुझे लग रहा है मेरे उपन्यास के लिंग विकलांग युवा नायक बिन्नी उर्फ विनोद उर्फ इमली को मिल रहा है '(सम्यक सरस्वती संपादक महेश भारद्वाज जनवरी मार्च 2019 प्रश्न संख्या 11)इस कृति की विमर्शकर सुधा उपाध्याय अपने मानवीय कीनन की जिंदगी की असलियत को दिखाने के क्रम में समाज कैसा चेहरा दिखाने में सफल है जिसमें रिश्ते हर परिवार समाज सब खोखला दिखाई देता हैl जब आप उसे खोखले समाज के अंदर झांकते हैं तो त्रासदी और गहरी होती जाती है और अंततः पुलिस को एक फूली हुई लाश मिलती है इस मामले को पुलिस  की आपसी रंजिश की वजह से हत्या का जमा पहना कर बंद कर देती हैl( समिक सरस्वती संपादक महेश भारद्वाज जनवरी मार्च 2019 पृष्ठ संख्या 15 )विनोद से विमली बनी बिनानी समाज के क्रूर अमानवीय तिरस्कार पूर्ण जीवन की त्रासदी को अपनी मां के लिए पत्रों के माध्यम से व्यक्त करती है उसके जीवन पर आधारित रचनाओं के आधार पर लेखिका सागरिका संपादक मिलन बिश्नोई की पुस्तक ' किन्नर विमर्श' साहित्य और समाज की समीक्षात्मक टिप्पणी करती हुई किन्नर की दशा को चित्रित करने वाली रचनाओं के विषय में रहती हैं हिंदी साहित्य को ध्यान से देखेंगे तो स्पष्ट होता है कि निराला ने अपने उपन्यास 'कुल्ली भाट'  में समलैंगिक विमर्श के बीज वह दिए थेl शिव प्रसाद सिंह की कहानी बहन वृद्धि और बिंदा महाराज केंद्र दृष्टि से उल्लेखनीय है वृंदावन लाल वर्मा का एकांकी नीलकंठ का एक किन्नर पत्र जनता की सेवा हेतु एक सेवक बनाना चाहता है कि सामाजिक संतुलन को बिगड़ने से बचाया जा सकेl किन्नर शिक्षक की कविता का उल्लेख करती हैं कोख तो तुम्हे भी जन्म देती है घोर प्रसव पीड़ा के बाद पहले ही गोद तिरस्कार से फेर लेती है मां गले से फिर भी लगती है lसबसे राज दुलारे.......इसी क्रम में आगे कुसुम आंचल की कहानी की 'मुर्दंन का गांव'का भी उल्लेख करती है भगवत अनमोल के उपन्यास जिंदगी 50-50 तथा दो अनसूया त्यागी के उपन्यास' मैं भी औरत हूं' 2005 मोनिका देवी के दो उपन्यास अस्तित्व के तलाश में सिमरन तथा हां मैं किन्नर हूं कांता बुआ 2018 विजेंद्र प्रताप सिंह और गर्व कुमार गोंड द्वारा संपादित कथा और किन्नर 2018 पर भी प्रकाश डालते हैं कीनन की या एलजीबीटी की दशा का वर्णन एक सामान्य व्यक्ति कर ही नहीं सकता ऐसी दशा जब मर्दानी या जननी कपड़ों में कैसा पुरुष अस्तित्व बाहर जाने के लिए छटपटा उठना है तांत्रियां झनझना कर रह जाती हैं और तरंगे अंदर-अंदर थम जाती हैं उसे वक्त हृदय चीत्कार के अतिरिक्त कुछ और नहीं हृदय से चित्कार की अतिरिक्त कुछ और नहीं निकलता तब अपने शरीर की विकृति विविधता और घृणा से भारत ह्रदय स्वयं को स्वीकार कर देता है डॉक्टर दिग्ग विजय कुमार शर्मा अपने लेख 'वर्तमान साहित्य में थर्ड जेंडर की प्रासंगिकता' विषय पर गंभीरता से लिखते हुए प्रकाश डालते हैं कि "प्रिया बाबू का नाम चारवा नाम अल्लाह 2007 यह 30 साल पहले अमेरिका में शुरू किए गए ट्रांसजेंडर राइट पर लिखी पुस्तक है जर्मन ग्रीक द्वारा द फीमेल न्यूज़ यह अंतरराष्ट्रीय बेस्ट सेलर 10 से अधिक भाषाओं में अनूदित नई बात पर सबसे लोकप्रिय पुस्तक है एक नलिनी जमीला द्वारा लिखी गई आत्मकथा डी 'ऑटो बायोग्राफी ऑफ सेक्स वर्कर' किसी प्लेट का एक सेफ गर्ल तो लव 1965 जिसे 27 वन लिटरेरी अवॉर्ड जून 2016 में बेहतरीन उपन्यास के रूप में पुरस्कृत किया गया थर्ड जेंडर पर बहुत से कीनन ने अपनी आत्मकथाओं के माध्यम से स्वयं की भोगी विकट स्थितियों का वर्णन बड़ी बेपगी से किया है जिसने से ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की आत्मकथा में हिजड़ा मैं लक्ष्मी के माध्यम से अपने समुदाय पर हुए अत्याचार और अन्य को बेपर्दा करती हैं यदि हम कीनन की राजनीति में पदार्पण की बात करें तो कई किन्नर हस्तियों ने समाज में अपना लोहा बनवाया है जिनमें से शबनम मौसी ,कमलाजन ,आशा देवी,मिला किन्नर मधु किन्नर ,लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी आदरणीय विधायक से लेकर महापौर तक के सफर को तय किया हैl समाज में किन्नर समुदाय के विकास की रफ्तार धीमी है किंतु आरंभ हो चुका है एक सकारात्मक परिवर्तित दृष्टिकोणl थर्ड जेंडर पर ही आधारित नाटक 'जानेमन' मछिंद्र मोरे ने जिस प्रकार से समाज की विडंबनाओ और विसंगतियों को उभारा है वह दर्शक या पाठक को झकझोरने वाला हैl एलजीबीटी को आधार बनाकर साहित्य की कई विधाओं को साहित्य की लेखनी समृद्धि करती आई हैlप्राचीन काल से ही पुराने आख्यान किमवदंतियों के माध्यम से किन्नर समुदाय को रेखांकित किया जाता रहा है,फिर भी उनकी इस अमानुषिक दुर्दशा हेतु कौन जिम्मेदार है ...?प्रश्न यह प्रश्न अभी अनुत्रित है l इसका उत्तर अपने अंतर्मन में झांकने पर ही मिलेगाl किन्नर की सामाजिक सरोकारों में बधावों शगुन दुआओं से ऊपर उठकर कुछ फिल्म निर्देशों ने उनकी वास्तविक स्थिति को समाज के सम्मुख लाने का प्रयत्न किया हैl जिनमें से प्रमुख महेश भट्ट की तमन्ना और सड़क तनुजा चंद्रा की संघर्ष श्याम विनेगर की वेलकम टू सज्जनपुर राहुल रावल की मस्त कलंदर दीपा मेहता की पास और आशुतोष राणा के शबनम मौसी के किरदार को कोई कैसे भूल सकता है आजकल कलर्स टीवी पर आधारित शक्ति लोकप्रियता के चरम पर है जिसमें किन्नर के प्रति पुरुष वर्ग के मान और अपमान की ...एक मां एक बेटी अपने अस्तित्व को एक नई उड़ान देना चाहती हैं शासन और सरकार किन्नर के लिए किस प्रकार की नीतियां नियम बनाते हैं वह द्वितीय है पहली प्राथमिकता हमारे अपने व्यवहार की हैlआज हमें आवश्यकता है इस समुदाय की बेहतरीन के विषय में सोचने की जैसे जब भी हमारा सामना किन्नर से हो उदासीनता और घृणा की भावना को अपने ऊपर हावी न होने देने की ,यदि अपने समुदाय से बाहर आकर कोई किन्नर रोजगार करना चाहे तो उसे रोजगार या घरेलू कार्यों के लिए नौकरी देने की ,सरकार द्वारा किसी भी सामाजिक दुर्घटना हेतु विकसित हेल्पलाइन नंबर की या सहायता समूह की शान द्वारा निर्मित पब्लिक टॉयलेट सुलभ शौचालय में एक अलग किन्नर विकल्प एवं व्यवस्था की, व्यक्तिगत पहचान पत्रों के बनवाने में सुगमता की,सोशल मीडिया पर एलजीबीटी समुदायों को फ्रेंड फॉलोइंग और रिजेक्ट में भेज दीजिए रिक्वेस्ट शामिल करने की समाज में उनके उचित व समान अधिकारों की किन्नर से दुर्व्यवहार के प्रति सजगता व सहायता देने की मां-बाप द्वारा किन्नर को न देने की और किन्नर समुदाय द्वारा इसे जबरन न लेने की पहल करने की,सार्वजनिक स्थानों में भेदभाव रहित व्यवहार की ,अन्य से कई कार्य हैं ....जिनके माध्यम से हम समुदाय को त्रास पूर्ण जीवन से बाहर निकाल कर मुक्त हृदय से जीवन जीने की स्वतंत्रता दे सकते हैंl शासन स्तर की बात की जाए तो पहले की तुलना में आज थर्ड जेंडर को अपने मानवाधिकारों के हनन के प्रति आवाज उठाने की तथा न्याय प्राप्त करने का अधिकार है सामाजिक राजनीतिक स्तर पर अपनी पेट बनाने की स्वतंत्रता भी मिल रही है तमिलनाडु देश का पहला ऐसा राज्य है जिसमें सन 2008 में हिजड़ा समुदाय को सरकारी मान्यता प्रदान की ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड भी सन 2008 में स्थापित हुआ वर्ष 2014 में सेट यूनिवर्सिटी गुजरात में थर्ड जेंडर समुदाय से जुड़े व्यक्ति को प्रवेश देकर ऐतिहासिक पहल की वर्ष 2016 के महाकुंभ में भी इस परिवर्तन को देखा जा सकता हैl( महेश भारद्वाज सामाजिक सरस्वती अप्रैल सितंबर 2018 पृष्ठ संख्या 64 )आज की इग्नू से चाहे तो दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से पढ़ाई पूरी कर सकता हैlलेखन कला ,साहित्य ,चित्रकला आदि सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रतिभाग करने के द्वार भी खुल रहे हैंlआज आवश्यकता है तो एक शब्द समाज के अपने पूर्वाग्रह से मुक्त होकर पूरी प्रतिबद्धता से समुदाय को उनकी वीरूपता के साथ स्वीकार करें और सम्मान दें.. 

                  Dr. Sangita

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