सत्यम शिवम सुंदरम.....संयोग बस अचानक से बन जाते हैं ये मैंने अक्सर महसूस किया हैl मन में वर्षों से था कि उज्जैन जाऊंगी तो द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल के दर्शन करूँगीl ऐसा सुंदर संयोग बना कि बिना किसी पूर्व तैयारी के हम उज्जैन के लिए निकल पड़े .......क्षिप्रा नदी तट पर बसे उज्जैन नगरी को महाकाल की नगरी के रूप में भी जानते हैं l महाकाल शिव की नगरी जहां पत्ते पत्ते पर शिव है,फूल फूल पर शिव है,वह फूल चाहे सफेद हो....धतूरे के हो गुलाब के हों....गेंदे के हों.....बेलपत्र हो.....जो भी जहां भी हम देखते हैं ,वहां शिव ही शिव नजर आते हैंlउज्जैन में बहती शिप्रा नदी और शिव दोनों को ही हम महसूस कर सकते हैं l सुबह-सुबह सूर्य जब उदित होता है वहां सूर्य की किरणों के साथ शिवा की ज्योति प्रकट होती है और हर एक किरण मन को मोहित करती l है शिव जहां है वहां उनका पूरा परिवार भी हमें दिखता है मां पार्वती श्री गणेश कार्तिकेय हर कोई उनके आसपास रहता हैl शिव कभी अकेले वास नहीं करते जिस मंदिर में भी रहते हैं वहां उनका परिवार उनके साथ रहता हैl नंदी द्वार पर प्रहरी की तरह रहते हैंl उज्जैन में शिव मंदिर का जो रंग है वह काला और हल्का गेरुआ आधे आधे भाग को अलग-अलग रंगों से रंग कर एक अलग ही रूप दिखाया गया हैlकलाकृतियां मनमोहक हैं l गेरुआ रंग के पत्थरों का आकर इस प्रकार रखा गया है ,जैसे वह एक पर एक मंत्र हों l महाकाल शिव का होने वाला श्रृंगार हर दिन नया अनोखा अनूठा और मन मोह लेने वाला होता हैl कभी एक जैसा रूप हम शिव का नहीं देखते शिव के बहुत सारे रूप जो है वह महाकाल शिवलिंग पर सजाए जाते हैंl वहाँ हम बहुत लेट पहुँचे इसलिए रात में दर्शन लाभ न मिल सकाl बाहर से ही हम आरती में सम्मिलित हुए l अगली सुबह महाकाल के दर्शन से मन शांत था l वहाँ की रौनक के कहने ही क्या....
.. फिर भी थोड़ा सा कहना है कि....भारतीय शिल्प और शैली वह चाहे मन्दिर की हो मूर्तियों की हो या भवनों की या ऐतिहासिक धरोहरों की ...ये मुझे हमेशा से अपनी ओर खींचते हैंl महाकाल का भव्य मन्दिर परिसर रात हो या दिन अपनी भव्यता से मन मोह लेता हैl बरबस ही आँखें मन्दिर की दो रंगों ( आधा काला और आधा हल्का गेरुआ) की ओर हो लेती हैं ....परिसर में निर्मित नयापन भी आकर्षण से भरा है....मन्दिर के आस-पास की शांति को महसूस किया जा सकता हैl
उज्जैन में ही स्थित गढ़ कालिका और काल भैरव के दर्शन करते हुए हम करीब डेढ सौ किलो मीटर दूरी पर नर्मदा नदी तट पर स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक और ओंकारेश्वर महादेव ..... जहाँ प्रकृति की गोद में किलकारी मारते शिशु से घाट और नदी में नावों से दर्शन को जाते लोगों के मुख से शिव मंत्रो की ध्वनि मन को भक्ति और भाव से भर रही थीl मन्दिर के अंदर की दीवारों और खंभों पर बनी नक्काशी और उकेरी गई मूर्तियों के बीच -बीच में अनेक सुंदर आकृतियाँ मुर्तिकारों, शिल्पकारों की उन्नत कला की सराहना करने को प्रेरित कर रही थी .... वहाँ से वापस लखनऊ आते हुए माँ पीतांबरा के पुनः दर्शन हुए.... वहाँ के कुछ प्यारे पलों को कैमरे में कैद किया... कुछ इस तरह... ☺ https://www.facebook.com/share/p/8i3hgEq2m4hSHC5g/?mibextid=oFDknk
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