एक बात तो हम सभी मानते हैं कि भारतीय परिवेश में ज्ञान आदि स्रोत के रूप में वेदों को ही आधार बनाया जाता हैl भारतीय ज्ञान परंपरा में वेद ही ज्ञान का आरंभ माने जाते हैं l'शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ,नई दिल्ली सह अभ्यास वर्ग व कार्यशाला' ....यह लेख सिर्फ तटस्थ भाव से ही पढ़ें ....शिक्षा वह है जो हमें उचित -अनुचित का बोध कराती है l विपरीत परिस्थितियों के भंवर से बाहर निकालती है lकिंतु,शिक्षा का अर्थ संकुचन डिग्रियों तक ही होकर रह जाता हैl इस स्थिति में हमें आवश्यकता है ,शिक्षण उद्देश्य को समझते हुए समाज तक पहुंचनाl यह कार्य हम सभी का हैl जिसका दायित्व बोध हमें नहीं हो पाता l हम में से ही एक डॉक्टर दीनानाथ बत्रा जिन्हें इसका बोध हुआ और उन्होंने वर्ष 2004 में 'शिक्षा बचाओ आंदोलन' की शुरुआत कीl यह आंदोलन एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में गलत ढंग से किए गए बदलावों पर केंद्रित थाl किंतु,आज की स्थिति यह है कि इस आंदोलन का रूप बदलकर 'शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास' हो गया हैl जिसके संस्थापक के रूप में दीनानाथ बत्रा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैl अब इसके अभियान से जुड़े 11 विषय- चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास( वर्ष 2007 में 'यौन शिक्षा' के स्थान पर 'चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास' को लागू करने का सुझाव दिया गया थाl)जो कि तैतरीय उपनिषद में व्यक्तित्व विकास हेतु दिए गए पंचकोश की संकल्पना को आधार बनाकर तैयार किया गया हैl हालांकि 'यौन शिक्षा' मर्यादित शब्दावली का प्रयोग करते हुए सामान्य रूप से परिवार को ही देनी चाहिए...जैसे हम उन्हें अच्छे संस्कारों से सजाते हैं l भारतीय जनमानस की चेतना प्रबल हो तो इस शिक्षा को 85% सहमति से व्यापक रूप से पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित किया जा सकता हैlइसकी सहमति अभिभावक से लेनी अनिवार्य की जानी चाहिए ल(यह मेरे अपने विचार हैं)यह पहला विषय ही संपूर्णता लिए हुए हैं और इस शिक्षा का आरंभ हमारे अपने परिवार से ही प्रारंभ हो जाता हैl इसी तरह अन्य विषय वैदिक गणित,पर्यावरण शिक्षा,शिक्षा में स्वायत्तता ,प्रबंधन शिक्षा ,प्रतियोगी परीक्षा से संबंधित शिक्षा,तकनीकी शिक्षा ,शिक्षक शिक्षा ,शोध प्रकल्प,इतिहास शिक्षाl इसमें भारतीय ज्ञान परंपरा- इसके तीन आयाम हैं lभारतीय भाषा मंच,शिक्षा स्वास्थ्य न्यास ,भारतीय भाषा अभियानl इसमें कार्य विभाग में प्रचार प्रसार (2018),महिला कार्य (2020),और प्रकाशन कार्य( 2021)हैंl अभियान के रूप में इस समय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020)और आत्मनिर्भर भारत( 2020 )प्रमुखता से तीव्र हैंl

        मुझे याद है कि जब मैं 'विश्व हिंदी सम्मेलन',भोपाल (2015)में पहली बार शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के स्टॉल पर गई थीl वहां मैंने अंश भर मात्रा जाना थाl उसके बाद मैं 'भारतीय भाषा मंच'( 2015)में जुड़ीl कितने सालों बाद आज यह एक व्यापक रूप में हमारे सामने हैं 14 .6 .24 से 17.6.24 के मध्य आयोजित यह 'राष्ट्रीय शैक्षिक कार्यशाला सह अभ्यास वर्ग' सरला बिरला विश्वविद्यालय,रांची में आयोजित हो रहा हैl जिसे सफल बनाने के लिए पूरी टीम महीना पहले इस तैयारी में लग गई थीl 14 को यह कार्यक्रम सर्वप्रथम रांची में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की राष्ट्रीय संचालन समिति की बैठक से प्रारंभ हुआl यह कार्यक्रम जिसमें देश भर से 350 से अधिक शिक्षाविदों ने प्रतिभाग कियाl कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में न्यास के राष्ट्रीय सचिव श्री अतुल कोठारी जी का उद्बोधन,आदरणीय शिक्षाविदों के उन्नतशील विचार कार्यकर्ताओं में ऊर्जा को संचारित करने लगाl उद्घाटन सत्र व अन्य  सत्र के उपरांत निर्धारित समय अनुरूप चक्रीय सत्र में हमारे कार्य पद्धति कैसी हो इस पर चर्चा हुईl न्यास की कार्य पद्धति में प्रमुख बिंदु में जो मंत्र बिंदु रहा वह यह है कि,हमारा कार्यकर्ता विद्वान बने ,विद्वान कार्यकर्ता बनेl हर कार्यकर्ता मित्र हो और हर मित्र कार्यकर्ता बनेl हर काम के लिए कार्यकर्ता हो हर कार्यकर्ता के लिए काम होl अन्य सभी बिंदुओं पर विचार विमर्श ने बहुत सारे समाधानों पर प्रकाश डाला l हमारे कार्य  शैली के जो तरीके हैं जैसे सामूहिकता,पारस्परिकता ,अनामिकता प्रदर्शित,अनौपचारिकता इन्हीं से ही कार्य पद्धति का वास्तविक और व्यावहारिक क्रियान्वयन संभव हो सकता हैl कार्यकर्ता संवाद के स्तर पर किस प्रकार का व्यवहार करें कि लोग उनसे जुड़ना चाहें l आत्मीयता बढ़ाना चाहें l कार्यकर्ता के विकास मार्ग में यह सभी महत्वपूर्ण पड़ाव हैl कार्यकर्ता संभाल एक मनोवैज्ञानिक स्तर हैl जिसमें स्थिति के अनुरूप स्वयं को ढाल कर दूसरे को भी उसमें  ढालना हैk इसका ध्यान हर कार्यकर्ता को होना चाहिएl एक कार्यकर्ता को कार्यक्रम की योजना बनाने समय अधिक से अधिक लोगों की सुविधा अनुसार दिन ,समय,स्थान आदि की व्यवस्था करनी चाहिए l इस दौरान हर कार्यकर्ता को कम से कम सप्ताह में एक दिन का प्रवास किसी न किसी कार्यकर्ता के घर पर करना चाहिएl यह आत्मीयता बढाने का उत्तम मार्ग होता हैl न्यास का एक मंत्र यह भी है की 'समस्या पर नहीं समाधान पर चर्चा हो'l न्यास के सभी विषयों पर चक्रीय सत्र विषय से संबंधित संयोजक ,प्रांत संयोजक व अन्य विद्वानों के द्वारा लिया गयाl जिसमें वर्ष भर के कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया गया और आगामी वर्ष की कार्य योजना व उसकी रूपरेखा को भी प्रस्तुत किया गयाlचक्रीय सत्र के मध्य बसंत कुमार बिरला प्रेक्षागृह में समय-समय पर श्री कोठारी जी ,न्यास की अध्यक्ष डॉक्टर पंकज मित्तल जी ,राज्यसभा सांसद आदरणीय प्रदीप वर्मा जी,प्रफुल्ल केतकर जी व अन्य महानुभावों के उद्बोधन ने विचारों के स्तर पर प्रत्येक को जागृत करने का प्रयास किया और अपनी भारतीय सभ्यता और संस्कृति,विमर्श और नॉरेटिव शिक्षा,भारतीयता ,अनुभव कथन प्रबंधन एवं आगामी योजना आदि अति महत्वपूर्ण बिंदुओं से  मार्ग प्रशस्त करने का भी प्रयास कियाl ज्ञान की गंगा के बीच कोई भी कार्यकर्ता डुबकी लगाए बिन वापस नहीं आया होगा यह निश्चित हैl

         आयोजन के द्वितीय दिवस के सांस्कृतिक कार्यक्रम की सराहना जितनी जितनी की जाए कम हैlकार्यक्रम का आरंभ यशोदा कृष्ण की भाव प्रस्तुति करने वाली छात्रा ने सभी का मन शुरू में ही मोह लिया थाl किसी भी स्थान विशेष की सभ्यता और संस्कृति क्या है ,इसे हम अगली प्रस्तुति में जीवंत रूप से प्रकृति के बीच स्वयं को पाकर महसूस करने लगते हैंl झारखंड राज्य की प्राण संस्कृति को वहां की लोक शैली में प्रस्तुत करते छात्र नर्तकों ने भी अमित छाप छोड़ीl एक के बाद एक समायोजित ,संयमित अनुशासित नृत्य मंडली ने अलग-अलग राज्यों की संस्कृति पर आधारित नृत्य प्रस्तुति इतनी कुशलता से किया कि ,हमें उस राज्य में उनके बीच पहुंचा दियाl किसी भी कलाकार की सबसे बड़ी विशेषता होती है कि,कलाकार कला का ही नहीं वास्तविकता का बोध कराने लगता हैl  वह स्वयं को मगन कर देता है l सभी प्रस्तुतियां एक से बढ़कर एक और मिजोरम की नृत्य कला में प्रवीण नर्तकों का बाँस के बीच का तालमेल देखकर आश्चर्य हुआl ऐसा लगता है कि हम लोग मिजोरम ही पहुंच गएl मंच पर लगे डिस्प्ले बोर्ड पर चलचित्रों और संगीत की प्रस्तुति ने चार चांद लगा दिएlयह सब कुछ सराहना योग्य व अद्भुत लगाl

          एक प्रश्न मन में आता है कि हम शिक्षा संस्कृति उत्थान यहां से क्यों जुड़े? यह प्रश्न मन में आना स्वाभाविक हैl शिक्षा आज के समय में क्या मायने रखती है..?आज हम देखते हैं कि,ज्ञान प्राप्ति के साधन और उद्देश्य दोनों ही बदले स्वरूप में हमारे सामने हैंl भारतीय सभ्यता और संस्कृति विश्व की एक ऐसी सभ्यता और संस्कृति है ,जिसे बनते किसी ने नहीं देखा और ना ही इसका उल्लेख सामने आता हैl हमारा परिचय जहां से इससे होता है यह हमें अपने पूर्ण विकसित अवस्था,समृद्ध अवस्था में मिलती हैl विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता होने का गौरव हमें प्राप्त हैlहमारा जो शैक्षिक परिवेश हमें प्राप्त होता है,वह उन्नत हैl हमारी प्रणाली,ज्ञान परंपरा सब कुछ अनूठी हैl विश्व गुरु होने का गौरव किसी अन्य देश को प्राप्त नहीं हैl  फिर वह क्या कारण है कि,हमें शिक्षा और शिक्षा प्रणाली के विरुद्ध आंदोलन की आवश्यकता पड़ने लगीl ऐसे कौन से कारण है कि हर पीढ़ी अपनी अगली पीढ़ी से कह रही है कि हमारे समय में तो ऐसा नहीं थाl आगे आने वाली पीढ़ियां भी यही दोहराएंगीl यह हमें सिनेमा जगत और साहित्य जगत दिखता lहै देखा जाए तो परिवर्तन प्रकृति का नियम हैl किंतु कुछ चीज परिवर्तित नहीं हस्तांतरित होती है,थोड़े बहुत अंतर के साथl हमें यहीं ठहरकर सोचना है कि हमारी पिछली पीढ़ी से हमें जो मिला था ,वह हम अपनी अगली पीढ़ी को कितना दे पाए हैंl कितना कुछ है जो हमसे छूट गया थाl कितना कुछ ऐसा है जो हमने कुछ सुधार कर दिया हैl ऐसे कौन से कारण मार्ग में आएl जो संस्कार हमें मिले थे,वह हम अगली पीढ़ी तक कितना पहुंचा पाए हैं ?संभवतः उत्तर यही मिल जाना चाहिएl यही नहीं मिलता है तो हम आगे बढ़कर और सोचें...l

        सोचने से इस ओर ध्यान जरूर जाएगा कि ,यह परिवर्तन तो बहुत पहले से ही होने लगा थाl आरंभ से ही,आगे आने वाली हर पीढ़ी अपने एक नए रूप में हमारे सामने आती रहीl फिर भी हमारी सभ्यता,संस्कृति ,शिक्षा प्रणाली पर इसका अधिक असर नहीं मिलताl यह असर हमें अन्य धर्म के भारत आगमन से देखने को मिलता हैl शिक्षा प्रणाली,शिक्षा व्यवस्था पर प्रथम प्रहर जिससे समाज और सभ्यता पर अनायास ही प्रभाव पड़ना स्वाभाविक थाl फिर भी,हमारी जड़ों पर कोई असर ना हुआ थाl हम विकल्पों के माध्यम से सम्भलते रहेl किंतु हमारे देश में जब यूरोपियन का आगमन होता हैl हम सुनते हैं बिल्कुल ही विचित्र भाषा और परिचित होते हैं उनकी वेशभूषा और शैली सेl हमने उन्हें स्वयं से श्रेष्ठ समझा और स्वयं में हीन भावना को गृह निर्माण की स्वीकृति दे दी ,और इस घर की नींव इतनी मजबूत बनी कि,हमारे मन में आज भी वही घर विद्यमान हैl हमने अपनी शिक्षा और अपनी भाषा को कमतर आँका l  यहीं से पतन प्रारंभ होता हैl हमने यही से अंधानुकरण करना आरंभ कर दियाl हमारे देश में विविध भाषा और संस्कृति के लोग आए पर हमने अनुकरण पाश्चात्य सभ्यता का कियाl क्योंकि विश्व की सबसे सशक्त भाषा का गौरव अंग्रेजी को देना शुरू कर दिया गयाl अंग्रेजों ने हम पर राज नहीं किया,वह तो अत्याचार की श्रेणी में आएगाl राज तो उनकी भाषा ,सभ्यता  संस्कृति ने किया जो आज तक कर रही है lउनके आने का लाभ हमें तकनीकी और कई प्रकार के सुविधाजनक आविष्कारों से मिला ,यह निसंदेह है lकिंतु हमारा जो नैतिक पतन प्रारंभ हुआ वह किसी भी गिनती में नहीं आताl क्योंकि वह तो अदृश्य हैl वह तो हमारे आचरण और व्यवहार में ही नजर आता हैl उन्नत साधन और सुविधाएं किसको नहीं प्रभावित करती ,सभी को करती हैंl यह साधन संपन्नता हमें जिस,विपन्नता की ओर ले जा रही है उसी का भान कराती है,शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास l चरित्र निर्माण और व्यक्तित्व का समग्र विकास क्यों आवश्यक है?इसे अब कहने की आवश्यकता नहीं हैl सभी बिंदुओं पर हम कार्य करें या ना करें किंतु एक ऐसा पुनीत बिंदु है जिस पर मैं पूरे मानों योग से कार्य करने के लिए स्वयं वचनबद्ध हूं और प्रेरित भी करूंगीlवह है,'पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण' यह मेरे लिए सर्वोपरि ,प्राथमिक उद्देश्य हैl क्योंकि चरित्र निर्माण,शिक्षा में सुधार भाषा प्रयोग अन्य जितने भी विषय हैं,स्वास्थ्य और स्वस्थ और जीवित व्यक्ति के लिए हैl जब वह व्यक्ति स्वच्छ वायु ग्रहण नहीं कर पाएगा,शुद्ध जल ग्रहण नहीं कर पाएगा ,शुद्ध आहार नहीं ले पाएगाl  तब वह किसी भी बिंदु पर कार्य करने लायक ही नहीं रह जाएगाl क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता हैl यह तो हम जानते हैंl अपने कुछ प्रश्नों के साथ यह लेख अभी यहीं तक रखना चाहूंगी कि,आपने अब तक के जीवन में कितने ऐसे पौधे रोपे जो आज फलदाई ,पुष्प दाई या छायादार हैं?स्नान करते समय,कपड़े घर,गाड़ी व अन्य सामग्री धुलते समय,साफ करते समय कितनी बार ख्याल आया कि हम आवश्यकता से अधिक इस प्राकृतिक संसाधन का दोहन कर रहे हैं?  ac में रहते -रहते कितनी बार ख्याल आता है कि कुछ समय हमें खुली हवा के सेवन के लिए कुछ समय के लिए ac बंद कर देना चाहिए..?कितनी बार ध्यान में आता है कि हम अपने बड़ों का अपमान अनजाने में ही कर रहे हैं ?कितनी बार हम अपने आप को या अपने बच्चों के हाथों में काफी देर तक फोन या  स्मार्टफोन या कंप्यूटर आदि पर गेम खेलते हुए व्यस्त पाते हैं?कितनी बार हम अपने मन को स्वयं पर हावी नहीं होने देते?कितनी बार हमें ऐसा लगता है कि हम पश्चिमीकरण के प्रभाव से खुद को बचा पा रहे हैं?कितनी बार हम अपने आपके ख्याल या अंतर्मन में अंग्रेजी से बात करते हुए खुद को पाते हैं ?कितनी बार हमें ऐसा लगता है कि हम अपनी परंपराओं ,सभ्यता ,संस्कृति और सामाजिकता से दूर होते जा रहे हैं? अपने देश से जुड़ी वह कौन सी स्थिति है जिसे आप दूर भविष्य में देखना चाहते हैं या देख पा रहे हैं...?कितनी बार...आप देखिए ,उत्तर मिलेगा जरूरl

 Dr.Sangita

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